बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली के मूल तत्व बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सुदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना प्रणाली के मूल तत्वसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- कार्टोग्राफिक संकेतीकरण त्रिविम आकृति एवं मानचित्र के प्रकार मुद्रण विधि का वर्णन कीजिए।
उत्तर -
कार्टोग्राफिक संकेतीकरण त्रिविम आकृति एवं मानचित्र
त्रिविम आकृति अपनी भौगोलिक स्थिति एवं उनके गुणों द्वारा पहचानी जाती है। मानचित्र में त्रिविम आकृति प्रदर्शन हेतु मानचित्र संकेत का प्रयोग किया जाता है जो आकृति की भौगोलिक स्थिति एवं दृश्य चरों या संकेतों सहित होते हैं। ये आकृति के आँकड़ा गुणों को दिखाते हैं। उदाहरण के लिए यदि हमें सड़क को प्रदर्शित करना है, तो उसकी श्रेणी के अनुसार संकेत भी अलग होते हैं, जैसे राष्ट्रीय राजमार्ग हेतु मोटी लाल लाइन मानचित्र में प्रदर्शित की जाती है, जबकि राज्यीयमार्ग हेतु पतली काली रेखा का प्रयोग किया जाता है। इस तरह रंग एवं मोटाई के आधार पर मार्ग के प्रकार को पहचाना जा सकता है। अर्थात् मानचित्र में उपयुक्त संकेतों का चयन एक महत्वपूर्ण कार्य है। रास्टर आँकड़ों में सभी त्रिविम आकृतियां सेल से संबंधित रहती है, अतः रास्टर मानचित्र में संकेत चयन का उतना महत्व नहीं है, जबकि वेक्टर आंकड़ा में संकेत को बिन्दु, रेखा या बहुभुज में सम्मिलित किया जाता है। वेक्टर आँकड़ों में संकेत चयन हेतु सीधा नियम अपनाया जाता है। बिन्दु, बिन्दु आकृति हेतु, रेखा रेखीय आकृति हेतु एवं क्षेत्र, क्षेत्रीय आकृति हेतु संकेत के रूप में प्रयोग किए जाते हैं।
जीआईएस परियोजन में आयतन संबंधी त्रिविम आँकड़े भी उपयोगी होते हैं, जैसे ऊँचाई, तापक्रम, अवक्षेप आदि, किन्तु आयतन संबंधी आँकड़ों हेतु पृथक् संकेत होते हैं। इन्हें बिन्दु, रेखा एवं क्षेत्र द्वारा ही प्रदर्शित करते हैं। इसके अलावा एकीकृत आँकड़ा प्रदर्शन हेतु संकेत के अंदर संकेत का उपयोग किया जाता है जैसे बहुभुज के अंदर रेखा या बिन्दु।
मानचित्रकारी संकेतों में दृश्य चरों, यथा आकार, आकृति, गठन, नमूना, मान, छवि एवं रंग सम्मिलित होते हैं। छवि, मान एवं रंग तीनों रंग से ही संबंधित हैं।
आर्क व्यू में गठन एवं नमूना का चयन उसके भरने, चिह्नित करने या रंगीन पट्टिका द्वारा प्रदर्शित होता है। इसमें 50 भरने के नमूने, 28 रेखा नमूने, चिन्हित पट्टी में 50 संकेत होते हैं। इन सबमें 60 रंग भी सम्मिलित होते हैं।
रास्टर आँकड़ा का प्रदर्शन सीमित है क्योंकि इसमें आकार एवं आकृति का उपयोग नहीं होता। इसका कारण यह है कि, रास्टर आँकड़ों में सेल का प्रयोग किया जाता है। गठन या नमूना भी केवल बड़े सेल होने पर ही उपयोगी होते हैं किन्तु छोटे सेल में इनका प्रयोग मुश्किल होता है। रास्टर आँकड़ा का प्रदर्शन मुख्यतः रंगों पर निर्भर करता है।
रंगों का उपयोग - किसी भी मानचित्र में यदि रंगों का प्रयोग किया जाता है तो प्रत्येक आकृति बहुत अच्छी तरह से दिखाई देती है। इसी कारण जहां तक संभव हो मानचित्रकार श्वेत-श्याम की जगह रंगीन मानचित्र चुनता है। मानचित्रकार द्वारा रंग का प्रयोग करने से पहले रंग की छवि, मान एवं चमक को समझना जरूरी है।
छवि से तात्पर्य गुणवत्ता से है जो एक रंग को दूसरे रंग से अलग करती है, जैसे नीला, गुलाबी आदि। छवि, रंग निर्माण हेतु प्रभावली प्रकाश तरंगदैर्ध्य को भी परिभाषित करती है।
मान से तात्पर्य हल्के एवं गहरे रंग से है, जिसमें काला निचले स्तर पर एवं सफेद उच्च स्तर पर होता हैं। अधिकतर मानचित्र में गहरे रंग संकेत के रूप में प्रयोग किये जाते हैं।
चमक से तात्पर्य रंग की अधिकता या चमक से है। पूर्णत: संतृप्त रंग शुद्ध होता है जबकि अल्प संतृप्त रंग भूरी चमक देता है। रंगों के प्रयोग हेतु निश्चित नियम हैं। गुणवत्ता आँकड़ों के लिए उत्तम छवि दृश्य चर उपयुक्त हैं, जबकि मात्रात्मक आँकड़ों के लिए उत्तम छवि दृश्य चर उपयुक्त हैं, जबकि मात्रात्मक आँकड़ों के लिए मान एवं चमक उपयुक्त हैं।
मानचित्र के प्रकार
मानचित्र का वर्गीकरण विभिन्न प्रकार से किया जाता है। मानचित्रकार मुख्य रूप से मानचित्र को दो आधार पर वर्गीकृत करते हैं- पहला, उसके कार्य के आधार पर और दूसरा, संकेतीकरण के आधार पर कार्य के आधार पर मानचित्र को पुनः दो भागों में विभाजित किया जा सकता है - सामान्य संदर्भित मानचित्र एवं उद्देश्यपरक मानचित्र |
संदर्भित मानचित्र का उपयोग सामान्य प्रयोग हेतु किया जाता है। उदाहरण के लिए भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा निर्मित टोपोशीट, जिसका प्रयोग विभिन्न स्थानिक आकृतियों को प्रदर्शित करने में होता है।
उद्देश्यपरक मानचित्र को विषय मानचित्र भी कहते हैं, क्योंकि ये किसी एक विषय के विवरण को प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिए भूमि उपयोग को प्रदर्शित करना और भूजल संभावना मानचित्र को प्रदर्शित करना आदि।
संकेतीकरण के आधार पर मानचित्र को निम्न भागों में विभाजित किया जा सकता है-
(1) बिन्दु मानचित्र
इस एक समान बिन्दु संकेत द्वारा त्रिविम आँकड़े दर्शाये जाते हैं। प्रत्येक संकेत इकाई मान प्रदर्शित करते हैं। यदि एक बिन्दु 100 गाँव को प्रदर्शित करता है, तो 1000 गाँव हेतु 10 बिन्दु एक सीमा के भीतर चिन्हित करने होंगे। दूसरा प्रश्न यह है कि ये 10 बिन्दु कहाँ स्थित किये जायें। अधिकतर पैकेजों में बिन्दु रेंडम विधि द्वारा स्थापित किये जाते हैं, किन्तु इस तरह तैयार बिन्दु मानचित्र वास्तविकता से परे होता है।
(2) क्रमागत रंगीन मानचित्र
क्रमागत रंगीन मानचित्र का उपयोग मात्रात्मक संयोजन के द्वारा विभिन्न त्रिविम आँकड़ों को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।
(3) क्रोप्लेथ मानचित्र
मानचित्र के संकेत औसत आय या जनसंख्या घनत्व तथा प्रशासनिक सीमा पर आधारित होते हैं, जैसे जिला या ब्लॉक। मानचित्रकार शुद्ध मान एवं प्राप्त मान के बीच का अंतर जानते हैं। गणना द्वारा प्राप्त मान सामान्य मान है, जैसे जिले का जनसंख्या घनत्व, जबकि जिले की जनसंख्या या क्षेत्रफल जैसे कच्चे आँकड़े शुद्ध मान होते हैं। जनसंख्या घनत्व, जिले की जनसंख्या को क्षेत्रफल से विभाजित कर प्राप्त किया जाता है। दो जिले जिनकी जनसंख्या बराबर है, उनका जनसंख्या घनत्व अलग-अलग हो सकता है, यदि उनका क्षेत्रफल अलग-अलग हो। मानचित्रकार, प्राप्त मान को प्रदर्शित करने हेतु क्रोप्लेथ मानचित्र का प्रयोग करते हैं।
(4) पाई चार्ट मानचित्र
चार्ट मानचित्र हेतु पाई या स्तंभ चार्ट का उपयोग किया जाता है। क्रमागत वृत्त की भिन्नता पाई चार्ट कहलाती है। इसके द्वारा मात्रात्मक आँकड़ों को प्रदर्शित किया जाता है। वृत्त के उपभाग विभिन्न तत्वों के मान प्रदर्शित करते हैं। उदाहरण के लिए भूमि उपयोग को दर्शाने हेतु निर्मित पाई चार्ट में बसाहट क्षेत्र, एकल फसल क्षेत्र, द्विफसल क्षेत्र, खनन क्षेत्र, वन क्षेत्र आदि उपभागों को प्रदर्शित किया जाता है। ये विभाजन क्षेत्र, में उनकी उपलब्धता के प्रतिशत के आधार पर होते हैं।
इस प्रकार तुलनात्मक अध्ययन हेतु स्तंभ चार्ट का प्रयोग भी किया जाता है। उनका प्रयोग साथ के आँकड़ों की तुलना में भी किया जाता है।
प्रवाह मानचित्र - प्रवाह मानचित्र में विभिन्न मात्रात्मक आँकड़ों को रेखा की मोटाई की भिन्नता द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
मानचित्र मुद्रण
मानचित्र निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण है, उसको प्रदर्शन के योग्य बनाना अर्थात् मानचित्र पाठक को मानचित्र देखने के साथ ही समस्त जानकारी प्राप्त हो जाना चाहिए। इस हेतु मानचित्र के प्रत्येक तत्व को अक्षरों की आवश्यकता होती है क्योंकि बिन्दु, रेखा एवं क्षेत्र से ही समस्त मानचित्र निर्मित होते हैं एवं अलग-अलग स्थानों पर उसका अर्थ अलग होता है। अतः मुद्रण की भिन्नता द्वारा ही उन्हें पृथक किया जा सकता है। मुद्रण में भिन्नता लाकर अच्छे एवं एकजयी मानचित्र तैयार करना आज भी एक चुनौती है।
अक्षरों के आकार एवं रंग के अतिरिक्त अन्य भिन्नताएं मानक नहीं हैं। मानकीकरण की कमी के कारण जब जीआईएस उपयोगकर्त्ता मानचित्र समझने हेतु मानचित्रकारी से संबंधित पुस्तकों की सहायता लेते हैं, तो ज्यादा भ्रमिक हो जाते हैं। अक्षर के रूप हेतु अक्षर की मोटाई, चौड़ाई, बड़े अक्षर, छोटे अक्षर, रोमन या फिर तिरछे अक्षर आदि सामूहिक संदर्भ लिये जाते हैं।
मुद्रण भिन्नता
मुद्रण में भिन्नता से तात्पर्य रूप, आकार एवं रंग में भिन्नता है। इसका मतलब अक्षरों को लिखने की कला एवं मुद्रण अक्षरों में भिन्नता है। मुद्रीरूप के मुख्य रूप से दो समूह हैं- सेरिफ एवं सेन सेरिफ। सेरिफ में छोटे अक्षर होते हैं एवं रेखा के अंत में स्वच्छता हेतु टचिंग की जाती है, जिससे समाचार-पत्र या पुस्तक के मूलपाठ को पढ़ना सरल होता है। सेन सेरिफ मोटे एवं साधारण अक्षर होते हैं। ये पुस्तकों में कम की उपयोग किये जाते हैं, किन्तु मानचित्र में जटिल संकेत आदि में उपयोग किये जाते हैं। सेन सेरिफ के अक्षर अनेक प्रकार के होते हैं। इस कारण भी मानचित्र में इनका उपयोग करने से लाभ है।
मुद्रण प्रकार में मोटाई, चौड़ाई, सीधे या तिरछे एवं छोटे अक्षर आते हैं। मुद्रण आकार में अक्षरों की ऊँचाई नापी जाती है जो या तो इंच में या फिर प्वांइट में प्रदर्शित की जाती है। फांट का प्रयोग सम्मिलित रूप में किया जाता है, जिसमें मुद्रण रूप एवं आकार दोनों आते हैं।
मूलपाठ को स्थापित करना
मानचित्र हेतु विभिन्न अक्षरों का चयन कर मूल पाठ तैयार किया जाता है। किन्तु उससे भी महत्वपूर्ण है उसे मानचित्र में सही तरह से संयोजित करना। सामान्यं नियम के तहत अक्षरों को इस तरह रखा जाता है कि वे उस क्षेत्र की स्थिति को प्रदर्शित करें। बिन्दु आकृति के नाम हेतु मानचित्रकार उसके ऊपर दायीं ओर लिखने की सलाह देते हैं। रेखा आकृति ब्लॉक में आकृति के समांतर लिखी जाती है। क्षेत्र आकृति को उसके विस्तृत क्षेत्र में अंकित किया जाता है।
अन्य सामान्य नियमों के अनुसार नाम मानचित्र की सीमा की लाइन में लिखते हैं या अक्षांश रेखा के साथ लिखते हैं। जीआईएस पैकेज में स्वत; एल्गोरिथम द्वारा लेबलिंग आसान कार्य नहीं है। स्वतः नाम लिखने की विधि में बहुत सी समस्यायें आती हैं। नाम एक के ऊपर दूसरा रोपित हो जाता है। ऐसा नहीं होना चाहिए। छोटे पैमाने पर निर्मित मानचित्रों में ये समस्यायें ज्यादा आती हैं। इस कारण जीआईएस उपयोगकर्ता पूर्णतः स्वचालित विधि को नहीं अपनाते हैं। सामान्यतः मानचित्र की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु कुछ संपादन या संशोधन आवश्यक होते हैं। इस कारण अधिकतर जीआईएस पैकेज में एक से अधिक लेबलिंग विधियां होती हैं। आर्क व्यू में लेबलिंग हेतु तीन विधियां उपलब्ध होती है।
पहली विधि में टेक्स्ट लिखने हेतु एक बिन्दु स्थिति का चयन किया जाता है, जहाँ से वेक्टर की शुरूआत होती है। फिर पूरा टेक्स्ट टाइप कर दिया जाता है। यह विधि आँकड़ा स्रोत तथा मानचित्र पर सूचनात्मक वाक्य लिखने हेतु उपयुक्त है।
दूसरी विधि में आकृति में विशेष मान निर्धारित किया जाता है, जैसे गाँव का नाम। लेबिल की स्थिति पहले से निर्धारित होती है, जैसे गाँव का नाम ऊपर दायीं ओर लिखा जायेगा। यदि पूर्व निर्धारित स्थिति में समस्या है, तो बाद में उसकी स्थिति में परिवर्तन किया जा सकता है।
तृतीय विधि में लक्षणमान के आधार पर सभी या चयनित आकृतियां लेबिल हो जाती हैं। इस हेतु या तो आकृति के संदर्भ में पहले से स्थिति निर्धारित की जाती है या वही स्थिति समस्त आकृति में लागू की जाती है। इसका दूसरा विकल्प भी उपलब्ध है। जिसमें उत्तम स्थान चयन हेतु एल्गोरिथम का प्रयोग किया जाता है। तृतीय विधि अधिकतर उपयोगकर्ता पंसद करते हैं।
सबसे ज्यादा कठिन कार्य नदी को लेबलिंग करना है। इसमें अधिकतर नदी के प्रवाह के अनुरूप ही नाम दिया जाता है। यह नदी के ऊपर या नीचे की तरफ हो सकता है।
मानचित्र डिजाइन
मानचित्र डिजाइन एक दृश्य योजना है जिसके आधार पर लक्ष्य की प्राप्ति की जाती है। मानचित्र डिजाइन का उद्देश्य मानचित्र के प्रसारण को बढ़ाना है जो कि विषयवार हेतु अत्यंत आवश्यक है। अच्छी तरह से डिजाइन मानचित्र संतुलित, क्रमानुसार एवं देखने पर रूचिकर लगते हैं। जबकि यदि मानचित्र संतुलित, क्रमानुसार एवं देखने पर रूचिकर लगते हैं। जबकि यदि मानचित्र की डिजाइन अच्छी तरह से न होने पर वह भ्रमित करते हैं।
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- प्रश्न- रॉस्टर मॉडल की विवेचना कीजिए। इस मॉडल की क्षमताओं का भी वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विक्टर मॉडल की विस्तृत विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- कार्टोग्राफिक संकेतीकरण त्रिविम आकृति एवं मानचित्र के प्रकार मुद्रण विधि का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रॉस्टर मॉडल की कमियों और लाभ का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- विक्टर मॉडल की कमियों और लाभ के सम्बन्ध में अपने विचार लिखिए।
- प्रश्न- रॉस्टर और विक्टर मॉडल के मध्य अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- डेटाम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।